दोस्तों, अगर आप जानना चाहते हैं कि 🕋 इस्लाम में किसी की तारीफ करना कैसा है? तो इस पोस्ट में हमने Islam Me Tareef Karna Kaisa Hai? को पूरी डिटेल्स में लिखा है।
आप इस पोस्ट को पूरा पढ़ें और अच्छे से समझ जायेंगे कि इस्लाम के अनुसार किसी की तारीफ़ कैसे और किन बातों को ध्यान में रखकर की जाती है।
इस्लाम में तारीफ करना | Tareef Karna Kaisa Hai?
यहाँ नीचे हमने अच्छे से बताया है कि कुरआन और हदीस में तारीफ करना कैसा बताया गया है। एक हदीस में तारीफ करने को मन किया गया है।
तो एक हदीस में आप नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद सहाबा की तारीफ की है।
आईये जान लेते हैं कि तारीफ करना इस्लाम में कैसा है……
📜 हदीस के अनुसार tareef Karna Kaisa Hai?
हदीस में आता है कि एक बार एक सहाबी ने किसी की बहुत ज्यादा तारीफ की,
तो आप रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तूमने तो उस शख्स की गर्दन काट दी।
ठीक इसी तरह एक हदीस में आता है कि “जो तुम्हारे मुंह पर तुम्हारी तारीफ करे, तो तुम उसके मुंह पर ख़ाक दाल दो।”
तो जैसा कि देखा गया है कि इन दो हदीसों की बजह से कहा जाता है कि किसी के मुंह पर उसकी तारीफ नहीं करनी चाहिए।
📓 क़ुरान के अनुसार tareef Karna Kaisa Hai?
इसी तरह कुरान मजीद में भी आता है कि “फला तुजक्कू अन फुसाकुम”
जिसका हिंदी तर्जुमा होता है कि अपनी तारीफें मत किया करो।
यहाँ अपनी से मुराद अपनी या अपने साथियों की तारीफों से है।
क्यूंकि अल्लाह का इरशाद है कि अल्लाह को खूब पता है कि कौन परहेजगार है या कौन कितने पानी में है।
तो इन अहदीस से मालूम होता है कि किसी की तारीफ नहीं करनी चाहिए।
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तारीफ़ करने की एक हदीस | Tareef Karne Ki Hadees
एक दूसरी हदीस से यह मालूम होता है कि
खुद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी सहाबा इकराम की उनके अच्छे कामों पर तारीफ की है और उनकी हौसला अफजाई की है।
जैसा की एक हदीस में आता है कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने एक सहाबी से फ़रमाया कि
“तुम्हारे अन्दर दो अच्छाइयाँ ऐसी हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल को पसंद हैं।”
सहाबी ने फ़रमाया: – ए अल्लाह के रसूल वो अच्छाइयाँ क्या हैं?
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: – एक अच्छाई तो बर्दास्त की है और एक ये है कि तुम फैसलों में जल्दबाजी नहीं करते हो।
तो इस हदीस से साफ़ जाहिर है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी सहाबा की तारीफ की है।
कैसी तारीफ करना जाईज़ नहीं है?
जैसा कि हमने ऊपर देखा कि एक हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी सहाबा की तारीफ की है।
तो इससे ये पता चलता है कि जिस हदीस में तारीफ से मना किया गया है उसकी कुछ शर्तें इस तरह हैं
- पहली शर्त है कि तारीफ में मुबालगा आराई न हो।
- दूसरी शर्त ये है कि तारीफ में खुशामद या चापलूसी ना हो।
- तीसरी शर्त है कि जिसकी तारीफ की जा रही है वो छोटे ज़र्फ़ का न हो, जिससे की उसमें घमंड न आ जाये।
तो जैसा कि अगर किसी की तारीफ करनी है तो आप उसकी हौसला अफजाई करने के लिए उसकी तारीफ कर सकते हैं।
और ये आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का सुन्नत अमल है।
📌 अल्लाह ने कुरआन में भी फ़रमाया है कि "नेकी को फ़रोख दो या नेकी में एक दुसरे को तामून दो।"
🟢 हज़रत हुरैरा रजिअल्लाहु ताअला अन्हु ने अर्ज़ किया या रसूलअल्लाह,
लोग मेरे अच्छे अम्ल पर मेरी तारीफ करते हैं, तो मुझे इससे ख़ुशी होती है।
और साथ ही साथ यह भी पुछा के ये कैसा अमल है?
तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि
“ये तो दुनिया में अल्लाह की तरफ से अज़र है, आखिरत में तो इससे अलग और अज़र मिलेगा।”
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किसी की ज्यादा तारीफ करना कैसा है?
हदीस में आया है कि किसी भी शख्स की हद से ज्यादा तारीफ़ नहीं करना चाहिए।
🟢 हज़रत अबू मूसा र. अ. से रिवायत है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक आदमी को दुसरे आदमी की तारीफ करते हुए सुना,
और वो आदमी तारीफ करने में बहुत मुबाल्गा आराई के साथ काम ले रहा था।
तो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: –
“तुमने उस आदमी की कमर को हलाक कर दिया (काट दिया)।” 📕 सहीह बुखारी: 6060
बीबी की तारीफ करना | Bibi Ki Tareef Karna Kaisa Hai?
बीबी के मामले में दरगुजर करने वाला, नरमी से काम लेने वाला, नीज़ बीबी के हक़ में खैर और भलाई की बात को क़ुबूल करने वाला शख्स अच्छा सौहर है।
यहाँ खैर और भलाई से मतलब ये है कि हर एक शख्स में कुछ अच्छाइयाँ होती हैं और कुछ बुराईयाँ होती हैं।
तो हमें चाहिए कि हम अच्छाईयों और बुराईयों को तौलें और देखें कि अच्छाईयाँ कितनी हैं और बुराईयाँ कितनी हैं।
फिर हमें चाहिए कि अच्छाईयाँ की तारीफ करें और उनकी बुराईयों की इस्लाह करें।
ये नहीं होना चाहिए कि अपनी बीबी की बुराईयों को दूसरों के सामने पेश करता फिरे बल्कि होना ये चाहिए कि उनकी बुराईयों की इस्लाह करें।
🟢 सहीह मुस्लिम हदीस 3644 में है कि अबू हुरैरा र. अ. से रिवायत है कि नबी ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: –
“जो शख्स यौमे आखिरत और अल्लाह पर ईमान रखता है, इसे जब कोई मामला दरपेश हो तो भलाई की बात करे, वरना खामोश रहे।
लोगों, औरतों के हक़ में खैर और भलाई को क़ुबूल करो।
याद रखो औरतें पसली से पैदा की गयी हैं और पसली में सबसे टेड़े हिस्से से बनायीं गयीं हैं।
अगर तुम इसे सीधा करना चाहोगे तो इसे तोड़ डालोगे और अगर बैसी ही रहने दोगे, तो वो टेड़ी की टेड़ी रहेगी।
लिहाजा इनके हक़ में खैर और भलाई को क़ुबूल करो।
आखिरी शब्द
तो जैसा कि इस पोस्ट में हमने पढ़ा कि अगर किसी की तारीफ करनी है तो,
तारीफ में मुबाल्गा आराई, चापलूसी ना हो और किसी छोटे ज़र्फ़ के शख्स की तारीफ न की जाये कि उसमें कहीं घमंड ना आ जाये।
दोस्तों हमसे कहीं लिखने में कोई गलती हुई हो तो आप हमें कमेंट में जरूर बताएं।
आपसे गुज़ारिश है कि इस पोस्ट को अपने साथियों के साथ शेयर करें।
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