[rank_math_breadcrumb]

two muslim boy performing dua with quran in middle and surah al imran in hindi ruku 1-10

Surah Al Imran in Hindi | सूरह-3 आले-इमरान हिंदी में रुकूअ 1-10

Category: Surah Ale Imran, Surah in Hindi | सभी सूरह हिंदी में

Post Updated On:

5 min read

Surah Al Imran in Hindi: – दोस्तों अगर आप सूरह अल इमरान को हिंदी में पढ़ना चाहते हैं तो आप बिलकुल सही जगह हो।

इस पोस्ट में हमने सूरह इमरान के रुकू 1-10 तक (Surah Al Imran Ruku 1-10) को हिंदी में तर्जुमा के साथ मौजूद कराया है।

two muslim boy performing dua with quran in middle and surah al imran in hindi ruku 1-10

सूरह इमरान कुरान मजीद की तीसरे नंबर की सूरह है जोकि पारा 3-4 में मौजूद है। सूरह आले इमरान मदीना में नाज़िल हुई है और इसमे दो सौ (200) आयतें और 20 रूकुअ है।

सूरह का नामसूरह आले इमरान (Surah Ale Imran)
पारा नंबर3-4
कहाँ नाज़िल हुई?मदीना
कुल रुकुअ20
कुल आयतें200
कुल शब्द3503
कुल अक्षर15336

📕 Surah Ale Imran Pdf Download

▶️ यह भी पढ़ें: –


Surah Al Imran In Hindi | सूरह इमरान हिंदी में

सूरह न० 3
(सूरह आलि इमरान (मदनी))
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

रुकूअ- 1

अलिफ्-लाम्-मीम् (1)
अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰

अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हुवल् हय्युल-कय्यूम (2)
अल्लाह ही पूज्य है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह जीवन्त है, सबको सँभालने और क़ायम रखनेवाला।

नज्ज-ल अलैकल्-किता-ब बिल्हक्कि मुसद्दिकल्लिमा बै-न यदैहि व अन्जलत्तौरा-त वल्-इंजील (3)
उसने तुमपर हक़ के साथ किताब उतारी जो पहले की (किताबों की) पुष्टि करती है, और उसने तौरात और इंजील उतारी;

मिन् क़ब्लु हुदल्लिन्नासि व अन्ज़-लल् फुरक़ा-न , इन्नल्लज़ी-न क-फरू बिआयातिल्लाहि लहुम् अज़ाबुन् शदीदुन् , वल्लाहु अज़ीजुन जुन्तिकाम (4)
इससे पहले लोगों के मार्गदर्शन के लिए और उसने कसौटी भी उतारी। निस्संदेह जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया उनके लिए कठोर यातना है और अल्लाह प्रभुत्वशाली भी है और (बुराई का) बदला लेनेवाला भी।

इन्नल्ला-ह ला यख्फा अलैहि शैउन् फ़िल्अर्ज़ि व ला फिस्समा-इ (5)
निस्संदेह अल्लाह से कोई चीज़ न धरती में छिपी है और न आकाश में।

हुवल्लज़ी युसव्विरूकुम् फ़िल्अर्हामि कै-फ़ यशा-उ , ला इला-ह इल्ला हुवल् अ़जी़जुल हकीम (6)
वही है जो गर्भाशयों में, जैसा चाहता है, तुम्हें रूप देता है। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं।

हुवल्लज़ी अन्ज़-ल अलैकल्-किता-ब मिन्हु आयातुम् मुहकमातुन् हुन्-न उम्मुल् किताबि व उ-खरू मु-तशाबिहातुन , फ़ अम्मल्लज़ी-न फी कुलूबिहिम जैगुन फ़-यत्तबिअ्-न मा तशा-ब-ह मिन्हुबतिगा-अल्-फ़ित्नति वब्तिगा-अ तअ्वीलिही , व मा यअ्लमु तअ्वी-लहू इल्लल्लाहु , . वर्रासिखू-न फ़िल्-अिल्मि यकूलू-न आमन्ना बिही कुल्लुम् मिन् अिन्दि रब्बिना व मा यज्जक्करू इल्ला उलुल्अल्बाब (7)
वही है जिसने तुमपर अपनी ओर से किताब उतारी, वे सुदृढ़ आयतें हैं जो किताबों का मूल और सारगर्भित रूप हैं और दूसरी (किताबें) सन्दिग्ध, तो जिन लोगों के दिलों में टेढ़ है वे फ़ितने (गुमराही) की तलाश और उसके आशय और परिणाम की चाह में उसका अनुसरण करते हैं जो सन्दिग्ध है। जबकि उनका परिणाम बस अल्लाह ही जानता है, और वे जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं, “हम उसपर ईमान लाए, जो हर एक हमारे रब ही की ओर से है।” और चेतते तो केवल वही हैं जो बुद्धि और समझ रखते हैं।

रब्बना ला तुजिगू कुलूबना बअ्-द इज़ हदैतना व हब् लना मिल्लदुन्-क रहम-तन् इन्न-क अन्तल वह्हाब (8)
हमारे रब! जब तू हमें सीधे मार्ग पर लगा चुका है तो इसके पश्चात हमारे दिलों में टेढ़ न पैदा कर और हमें अपने पास से दयालुता प्रदान कर। निश्चय ही तू बड़ा दाता है।

रब्बना इन्न-क जामिअुन्नासि लियौमिल-ला रै-ब फ़ीहि , इन्नल्ला-ह ला युख्लिफुल मीआ़द (9)*
हमारे रब! तू लोगों को एक दिन इकट्ठा करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नहीं। निस्सन्देह अल्लाह अपने वचन के विरुद्ध जाने वाला नहीं है।

रुकूअ- 2

इन्नल्लज़ी-न क-फरू लन् तुग्नि-य अन्हुम् अम्वालुहुम् व ला औलादुहुम् मिनल्लाहि शैअन् , व उलाइ-क हुम् वकूदुन्नार (10)
जिन लोगों ने अल्लाह के मुक़ाबले में इनकार की नीति अपनाई है, न तो उनके माल उनके कुछ काम आएँगे और न उनकी संतान ही। और वही हैं जो आग (जहन्नम) का ईधन बनकर रहेंगे।

क-दअ्बि आलि फिरऔ-न वल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् , कज्जबू बिआयातिना फ़-अ-ख-ज़हुमुल्लाहु बिजुनूबिहिम , वल्लाहु शदीदुल अि़का़ब (11)
जैसे फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों पर पकड़ लिया। और अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है।

कुल लिल्लज़ी-न क-फरू सतुगलबू-न व तुहशरू-न इला जहन्न-म , व बिअसल मिहाद (12)
इनकार करनेवालों से कह दो, “शीघ्र ही तुम पराभूत होगे और जहन्नम की ओर हाँके जाओगे। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।”

कद् का-न लकुम् आ-यतुन् फ़ी फ़ि-अतैनिल् त-कता , फ़ि-अतुन् तुकातिलु फ़ी सबीलिल्लाहि व उख़रा काफ़ि-रतुंय्यरौ-नहुम् मिस्लैहिम् रअ्यल् अैनि , वल्लाहु युअय्यिदु बिनस्रिही मंय्यशा-उ , इन्-न फ़ी ज़ालि-क ल-अिब्रतल्-लिउलिल अब्सार (13)
तुम्हारे लिए उन दोनों गरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों से देख रहे थे कि वे उनसे दुगने हैं। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है।

जुय्य-न लिन्नासि हुब्बुश्श-हवाति मिनन्निसा-इ वल्बनी-न वल्-कनातीरिल्-मुकन्त-रति मिनज्ज़-हबि वल् फिज्ज़ति वल्-खै़लिल्-मुसव्व-मति वल् अन्आ़मि वल्हर्सि , ज़ालि-क मताअुल हयातिद्दुन्या वल्लाहु अिन्दहू हुस्नुल मआब (14)
लोगो के लिए उन के मन को मोहने वाली चीज़ें, जैसे स्त्रियाँ, संतान, सोने चांदी के ढेर, निशान लगे घोड़े, पशुओं तथा खेती, शोभनीय बना दी गयी है| यह सब संसारिक जीवन के उपभोग्य है| और उत्तम आवास अल्लाह के पास है|

कुल अ-उनब्बिउकुम् बिखैरिम् मिन् ज़ालिकुम् , लिल्लज़ीनत्तकौ अिन्-द रब्बिहिम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा व अज्वाजुम् मुतह्ह-रतुव-व रिज्वानुम् मिनल्लाहि , वल्लाहु बसीरूम् बिल्अि़बाद (15)
कहो, “क्या मैं तुम्हें इनसे उत्तम चीज़ का पता दूँ?” जो लोग अल्लाह का डर रखेंगे उनके लिए उनके रब के पास बाग़ हैं, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। वहाँ पाक-साफ़ जोड़े होंगे और अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी। और अल्लाह अपने बन्दों पर नज़र रखता है।

अल्लज़ी-न यकूलू-न रब्बना इन्नना आमन्ना फ़ग्फिर लना जुनूबना व किना अज़ाबन्नार (16)
ये वे लोग हैं जो कहते हैं, “हमारे रब हम ईमान लाए हैं। अतः हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।”

अस्साबिरी-न वस्सादिक़ी-न वल्कानिती-न वल्मुन्फ़िकी-न वल्मुस्तग्फिरी-न बिल्अस्हार (17)
ये लोग धैर्य से काम लेनेवाले, सत्यवान और अत्यन्त आज्ञाकारी हैं, ये (अल्लाह के मार्ग में) ख़र्च करते और रात की अंतिम घड़ियों में क्षमा की प्रार्थनाएँ करते हैं।

शहिदल्लाहु अन्नहू ला इला-ह इल्ला हु-व वल्मलाइ-कतु व उलुल-अिल्मि का-इमम् बिलकिस्ति , ला इला-ह इल्ला हुवल्-अजीजुल हकीम • (18)
अल्लाह ने गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; और फ़रिश्तों ने और उन लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करनेवाली एक सत्ता को जानते हैं। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं।

इन्नद्दी-न अिन्दल्लाहिल इस्लामु , व मख़्त-लफ़ल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब इल्ला मिम्-बअ्दि मा जा-अहुमुल अिल्मु बग्यम् बैनहुम , व मय्यक्फुर् बिआयातिल्लाहि फ़-इन्नल्ला-ह सरीअुल हिसाब (19)
दीन (धर्म) तो अल्लाह की नज़र में इस्लाम ही है। जिन्हें किताब दी गई थी, उन्होंने तो इसमें इसके पश्चात विभेद किया कि ज्ञान उनके पास आ चुका था। ऐसा उन्होंने परस्पर दुराग्रह के कारण किया। जो अल्लाह की आयतों का इनकार करेगा तो अल्लाह भी जल्द हिसाब लेनेवाला है।

फ़-इन् हाज्जू-क फ़कुल अस्लम्तु वज्हि-य लिल्लाहि व मनित्त-ब अनि , व कुल् लिल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब वल्-उम्मिय्यी-न अ-अस्लम्तुम् , फ़-इन् अस्लमू फ़-कदिह्तदौ व इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अलैकल्-बलागु़ , वल्लाहु बसीरूम् बिल्अिबाद (20)*
अब यदि वे तुमसे झगड़ें तो कह दो, “मैंने और मेरे अनुयायियों ने तो अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया है।” और जिन्हें किताब मिली थी और जिनके पास किताब नहीं है, उनसे कहो, “क्या तुम भी इस्लाम को अपनाते हो?” यदि वे इस्लाम को अंगीकार कर लें तो सीधा मार्ग पा गए। और यदि मुँह मोड़ें तो तुमपर केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। और अल्लाह स्वयं बन्दों को देख रहा है।

रुकूअ- 3

इन्नल्लज़ी-न यक्फ रू-न बिआयातिल्लाहि व यक्तुलूनन्नबियी-न बिगैरि हक्किंव-व यक्तुलू-नल्लज़ी-न यअ्मुरू-न बिल्किस्ति मिनन्नासि फ़-बश्शिर्हुम् बि-अज़ाबिन अलीम (21)
जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करें और नबियों को नाहक़ क़त्ल करने के दर पे हों, और उन लोगों को क़त्ल करें जो न्याय का पालन करने को कहें, उनको दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो।

उलाइ-कल्लज़ी-न हबितत् अअ्मालुहुम फिदुन्या वल्-आखि-रति व मा लहुम् मिन्-नासिरीन (22)
यही लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में उनके लिए वबाल बने, और उनका सहायक कोई भी नहीं।

अलम् त-र इलल्लज़ी-न ऊतू नसीबम् मिनल-किताबि युद्औ-न इला किताबिल्लाहि लि-यह्कु-म बैनहुम् सुम्-म य-तवल्ला फ़रीकुम् मिन्हुम व हुम् मुअरिजून (23)
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें सौभाग्य, यानी किताब प्रदान की गई? उन्हें अल्लाह की किताब की ओर बुलाया जाता है कि वह उनके बीच निर्णय करे, फिर भी उनका एक गरोह (उसकी) उपेक्षा करते हुए मुँह फेर लेता है।

ज़ालि-क-बि-अन्नहुम् कालू लन् तमस्स-नन्नारू इल्ला अय्यामम् मअ्दूदातिंव-व गर्रहुम् फी दीनिहिम् मा कानू यफ्तरून (24)
यह इसलिए कि वे कहते हैं, “आग हमें नहीं छू सकती। हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों (के कष्टों) की बात और है।” उनकी मनघड़ंत बातों ने, जो वे घड़ते रहे हैं, उन्हें अपने दीन के बारे में धोखे में डाल रखा है।

फ़कै-फ़ इज़ा जमअ्नाहुम् लियौमिल ला रै-ब फ़ीहि , व वुफ्फ़ियत् कुल्लु नफ्सिम् मा क-सबत् व हुम् ला युजूलमून (25)
फिर क्या हाल होगा, जब हम उन्हें उस दिन इकट्ठा करेंगे, जिसके आने में कोई संदेह नहीं और प्रत्येक व्यक्ति को, जो कुछ उसने कमाया होगा, पूरा-पूरा मिल जाएगा; और उनके साथ कोई अन्याय न होगा।

कुलिल्लाहुम्-म मालिकल्मुल्कि तुअ्तिल मुल-क मन् तशा-उ व तन्ज़िअुल्मुल्-क मिम्मन् तशा-उ व तुअि़ज़्जु मन् तशा-उ व तुज़िल्लु मन तशा-उ बि-यदिकल्-खैरू , इन्न-क अला कुल्लि शैइन् क़दीर (26)
कहो, “ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त (प्रभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।”

तू लिजुल्लै-ल फिन्नहारि व तूलिजुन्नहा-र फ़िल्लैलि व तुख्रिजुल हय्-य मिनल-मय्यिति व तुख्रिजुल मय्यि-त मिनल्हय्यि व तर्जुकु मन् तशा-उ बिगैरि हिसाब (27)
“तू रात को दिन में पिरोता है और दिन को रात में पिरोता है। तू निर्जीव से सजीव को निकालता है और सजीव से निर्जीव को निकालता है, और जिसे चाहता है बेहिसाब देता है।”

ला यत्तखिज़िल मुअमिनूनल काफ़िरी-न औलिया-अ मिन दूनिल-मुअ्मिनी-न व मंय्यफ्अल ज़ालि-क फलै-स मिनल्लाहि फी शैइन् इल्ला अन् तत्तकू मिन्हुम् तुकातन् , व युहज्ज़िरूकुमुल्लाहु नफ़्सहू , व इलल्लाहिल-मसीर (28)
ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकार करनेवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते हैं। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है।

कुल् इन् तुख्फू मा फी सुदूरिकुम् औ तुब्दूहु यअ्लम्हुल्लाहु , व यअ्लमु मा फ़िस्समावाति व मा फिल्अर्जि , वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् कदीर (29)
कह दो, “यदि तुम अपने दिलों की बात छिपाओ या उसे प्रकट करो, प्रत्येक दशा में अल्लाह उसे जान लेगा। और वह उसे भी जानता है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।”

यौ-म तजिदु कुल्लु नफ्सिम् मा अमिलत् मिन् खैरिम् मुह्ज़रंव-व मा अमिलत् मिन् सूइन् त-वद्दु लौ अन्-न बैनहा व बैनहू अ-मदम् बअीदन् , व युहज्ज़िरूकुमुल्लाहु नफ्सहू , वल्लाहु रऊफुम बिल्अिबाद (30)*
जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई भलाई और अपनी की हुई बुराई को सामने मौजूद पाएगा, वह कामना करेगा कि काश, उसके और उस दिन के बीच बहुत दूर का फ़ासला होता! और अल्लाह तुम्हें अपना भय दिलाता है, और वह अपने बन्दों के लिए अत्यन्त करुणामय है।

▶️ यह भी पढ़ें: –

रुकूअ- 4

कुल इन् कुन्तुम् तुहिब्बूनल्ला-ह फत्तबिअूनी युह्बिब्कुमुल्लाहु व यग्फिर लकुम् जुनूबकुम , वल्लाहु गफूरूर्रहीम (31)
कह दो, “यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।”

कुल अतीअुल्ला-ह वर्रसू-ल फ़-इन् तवल्लौ फ़-इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल काफिरीन (32)
कह दो, “अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो।” फिर यदि वे मुँह मोड़ें तो अल्लाह भी इनकार करनेवालों से प्रेम नहीं करता।

इन्नल्लाहस्तफा आद-म व नूहंव-व आ-ल इब्राही-म व आ-ल अिमरा-न अलल् आलमीन (33)
अल्लाह ने आदम, नूह, इबराहीम की सन्तान और इमरान की सन्तान को संसार की अपेक्षा प्राथमिकता देकर चुना।

जुर्रिय्यतम् बअ्जुहा मिम्-बअ्ज़िन् , वल्लाहु समीअुन् अलीम ( 34 )
एक नस्ल के रूप में, उसमें से एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी से पैदा हुई। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है।

इज़ का-लतिमर-अतु अिमरा-न रब्बि इन्नी नजरतु ल-क मा फ्री बत्नी मुहर्र-रन् फ़-तकब्बल मिन्नी इन्न-क अन्तस्-समीअुल अलीम (35)
याद करो जब इमरान की स्त्री ने कहा, “मेरे रब! जो बच्चा मेरे पेट में है उसे मैंने हर चीज़ से छुड़ाकर भेंटस्वरूप तुझे अर्पित किया। अतः तू उसे मेरी ओर से स्वीकार कर। निस्संदेह तू सब कुछ सुनता, जानता है।”

फ-लम्मा व-ज़अ़त्हा कालत् रब्बि इन्नी वज़अतुहा उन्सा , वल्लाहु अअ्लमु बिमा व-ज़अत् , व लैसज्ज-करू कल्उन्सा व इन्नी सम्मैतुहा मर्य-म व इन्नी उअ़ीजुहा बि-क व जुर्रिय्य-तहा मिनश्-शैतानिर् रजीम (36)
फिर जब उसके यहाँ बच्ची पैदा हुई तो उसने कहा, “मेरे रब! मेरे यहाँ तो लड़की पैदा हुई है।” – अल्लाह तो जानता ही था जो कुछ उसके यहाँ पैदा हुआ था। और लड़का उस लड़की की तरह नहीं हो सकता – “और मैंने उसका नाम मरयम रखा है। और मैं उसे और उसकी सन्तान को तिरस्कृत शैतान (के उपद्रव) से सुरक्षित रखने के लिए तेरी शरण में देती हूँ।”

फ़-तक़ब्ब-लहा रब्बुहा बि-कबूलिन् ह-सनिं-व अम्ब-तहा नबातन् ह-सनंव-व कफ्फ़-लहा ज़-करिय्या , कुल्लमा द-ख-ल अलैहा ज-करिय्यल्-मिह्रा-ब व-ज-द अिन्दहा रिज्कन् का-ल या मर्यमु अन्ना लकि हाज़ा , कालत् हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि , इन्नल्ला-ह यरजुकु मंय्यशा-उ बिगैरि हिसाब (37)
अतः उसके रब ने उसका अच्छी स्वीकृति के साथ स्वागत किया और उत्तम रूप में उसे परवान चढ़ाया; और ज़क़रीय्या को उसका संरक्षक बनाया। जब कभी ज़क़रीय्या उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाता तो उसके पास कुछ रोज़ी पाता। उसने कहा, “ऐ मरयम! ये चीज़ें तुझे कहाँ से मिलती हैं?” उसने कहा, “यह अल्लाह के पास से है।” निस्संदेह अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब रोज़ी देता है।

हुनालि-क दआ ज़-करिय्या रब्बहू का-ल रब्बि हब् ली मिल्लदुन्-क जुर्रिय्यतन् तय्यि-बतन् इन्न-क समीअुद्दुआ-इ (38)
वहीं ज़क़रीय्या ने अपने रब को पुकारा। कहा, “मेरे रब! मुझे तू अपने पास से अच्छी सन्तान (अनुयायी) प्रदान कर। तू ही प्रार्थना का सुननेवाला है।”

फ़नादत्हुल् मलाइ-कतु व हु-व का-इमुंय्युसल्ली फ़िल्-मिहराबि अन्नल्ला-ह युबश्शिरू-क बि-यह्या मुसद्दिकम् बि-कलिमतिम् मिनल्लाहि व सय्यिदंव-व हसूरंव-व नबिय्यम् मिनस्सालिहीन (39)
तो फ़रिश्तों ने उसे आवाज़ दी, जबकि वह मेहराब में खड़ा नमाज़ पढ़ रहा था, “अल्लाह, तुझे यह्या की शुभ-सूचना देता है, जो अल्लाह के एक कलिमे की पुष्टि करनेवाला, सरदार, अत्यन्त संयमी और अच्छे लोगों में से एक नबी होगा।”

का-ल रब्बि अन्ना यकूनु ली गुलामुंव-व कद् ब-ल-ग़नियल कि-बरू वम्र-अती आकिरून् , का-ल कज़ालिकल्लाहु यफ्अलु मा यशा-उ (40)
उसने कहा, “मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कैसे पैदा होगा, जबकि मुझे बुढ़ापा आ गया है और मेरी पत्नी बाँझ है?” कहा, “इसी प्रकार अल्लाह जो चाहता है, करता है।”(

का-ल रब्बिज्अल्ली आ-यतन् , का-ल आ-यतु-क अल्ला तुकल्लिमन्ना-स सला-स-त अय्यामिन् इल्ला रम्ज़न् , वज्कुर रब्ब-क कसीरंव-व सब्बिह् बिल-अशिय्यि वल्-इब्कार (41)*
उसने कहा, “मेरे रब! मेरे लिए कोई आदेश निश्चित कर दे।” कहा, “तुम्हारे लिए आदेश यह है कि तुम लोगों से तीन दिन तक संकेत के सिवा कोई बातचीत न करो। अपने रब को बहुत अधिक याद करो और सायंकाल और प्रातः समय उसकी तसबीह (महिमागान) करते रहो।”

Surah Al Imran In Hindi रुकूअ- 5

व इज् कालतिल मलाइ-कतु या मर्यमू इन्नल्लाहस्तफाकि व तह्ह-रकि वस्तफ़ाकि अला निसा-इल आलमीन (42)
और जब फ़रिश्तों ने कहा, “ऐ मरयम! अल्लाह ने तुझे चुन लिया और तुझे पवित्रता प्रदान की और तुझे संसार की स्त्रियों के मुक़ाबले में चुन लिया।

या मर्यमुक्नुती लिरब्बिकि वस्जुदी वर्कअी मअर्राकिअीन (43)
“ऐ मरयम! पूरी निष्ठा के साथ अपने रब की आज्ञा का पालन करती रह, और सजदा कर और झुकनेवालों के साथ तू भी झुकती रह।”

ज़ालि-क मिन् अम्बा-इल गैबि नूहीहि इलै-क , व मा कुन-त लदैहिम इज् युल्कू-न अक्ला-महुम् अय्युहुम् यक्फुलु मर्य-म वमा कुन-त लदैहिम् इज् यख़्तसिमून (44)
यह परोक्ष की सूचनाओं में से है, जिसकी वह्य हम तुम्हारी ओर कर रहे हैं। तुम तो उस समय उनके पास नहीं थे, जब वे अपनी क़लमों को फेंक रहे थे कि उनमें कौन मरयम का संरक्षक बने और न उस समय तुम उनके पास थे, जब वे आपस में झगड़ रहे थे।

इज् कालतिल् मलाइ-कतु या मर्यमु इन्नल्ला-ह युबश्शिरूकि बि-कलि-मतिम् मिन्हुस्मुहुल-मसीहु अीसब्नु मर्य-म वजीहन् फ़िद्दुन्या वल्आख़ि-रति व मिनल मुकर्रबीन (45)
ओर याद करो जब फ़रिश्तों ने कहा, “ऐ मरयम! अल्लाह तुझे अपने एक कलिमे (बात) की शुभ-सूचना देता है जिसका नाम मसीह, मरयम का बेटा, ईसा होगा। वह दुनिया और आख़िरत मे आबरूवाला होगा और अल्लाह के निकटवर्ती लोगों में से होगा।

व युकल्लिमुन्ना-स फ़िल्मह्दि व कहलंव-व मिनस्सालिहीन (46)
वह लोगों से पालने में भी बात करेगा और बड़ी उम्र को पहुँचकर भी। और वह नेक व्यक्ति होगा। –

कालत् रब्बि अन्ना यकूनु ली व-लदुव-व लम् यम्सस्नी ब-शरून् , का-ल कज़ालिकिल्लाहु यख्लुकु मा यशा-उ , इजा कज़ा अमरन् फ़-इन्नमा यकूलु लहू कुन् फ़-यकून (47)
वह बोली, “मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कहाँ से होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नहीं?” कहा, “ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है तो उसको बस यही कहता है ‘हो जा’ तो वह हो जाता है।

व युअल्लिमुहुल-किता-ब वल-हिक्म-त वत्तौरा-त वल-इन्जील (48)
और उसको किताब और हिकमत, यानी तौरात और इंजील का ज्ञान देगा।

व रसूलन् इला बनी इस्राई-ल अन्नी कद् जिअ्तुकुम् बिआ-यतिम् मिर्रब्बिकुम् अन्नी अख्लुकु लकुम् मिनत्तीनि कहै-अतित्तैरि फ़-अन्फुखु फ़ीहि फ़-यकूनु तैरम् बि-इज्निल्लाहि व उब्रिउल्-अक्म-ह वल-अब-र-स व उह्यिल्मौता बि-इज्निल्लाहि व उनब्बिउकुम् बिमा तअकुलू-न व मा तद्दखिरू-न फ़ी बुयूतिकुम् , इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल्-लकुम् इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन (49)
और उसे इसराईल की संतान की ओर रसूल बनाकर भेजेगा। (वह कहेगा) कि मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशानी लेकर आया हूँ कि मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह के आदेश से उड़ने लगती है। और मैं अल्लाह के आदेश से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देता हूँ और मुर्दे को जीवित कर देता हूँ। और मैं तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम खाते हो और जो कुछ अपने घरों में इकट्ठा करके रखते हो। निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम माननेवाले हो।

व मुसद्दिकल्लिमा बै-न यदय्-य मिनत्तौराति व लि-उहिल्-ल लकुम् बअ्ज़ल्लज़ी हुर्रि-म अलैकुम् व जिअ्तुकुम् बिआ-यतिम् मिर्रब्बिकुम् , फत्तकुल्ला-ह व अतीअून (50)
और मैं तौरात की, जो मेरे आगे है, पुष्टि करता हूँ और इसलिए आया हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ उन चीज़ों को हलाल कर दूँ जो तुम्हारे लिए हराम थीं। और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशानी लेकर आया हूँ। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो।

इन्नल्ला-ह रब्बी व रब्बुकुम् फअबुदूहु , हाज़ा सिरातुम् मुस्तकीम (51)
निस्संदेह अल्लाह मेरा भी रब है और तुम्हारा रब भी, अतः तुम उसी की बन्दगी करो। यही सीधा मार्ग है।”(

फ़-लम्मा अ-हस्-स अीसा मिन्हुमुल कुफ्-र का-ल मन् अन्सारी इलल्लाहि , कालल-हवारिय्यू-न नह्नु अन्सारूल्लाहि आमन्ना बिल्लाहि वश्हद् बि-अन्ना मुस्लिमून (52)
फिर जब ईसा को उनके अविश्वास और इनकार का आभास हुआ तो उसने कहा, “कौन अल्लाह की ओर बढ़ने में मेरा सहायक होता है?” हवारियों (साथियों) ने कहा, “हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाए और गवाह रहिए कि हम मुस्लिम हैं।”

रब्बना आमन्ना बिमा अन्ज़ल-त वत्त-बअ् नर्-रसू-ल फक्तुब्ना म-अश्शाहिदीन (53)
“हमारे रब! तूने जो कुछ उतारा है, हम उसपर ईमान लाए और हम ने इस रसूल का अनुसरण स्वीकार किया। अतः तू हमें गवाही देनेवालों में लिख ले।”

व म-करू व म-करल्लाहु , वल्लाहु खैरूल् माकिरीन • (54)*
और वे गुप्त चाल चले तो अल्लाह ने भी उसका तोड़ किया और अल्लाह उत्तम तोड़ करनेवाला है।

Surah Al Imran In Hindi रुकूअ- 6

इज् कालल्लाहु या अीसा इन्नी मु-तवफ्फी-क व राफिअु-क इलय्-य व मुतहिहरू-क मिनल्लज़ी-न क-फरू व जाअिलुल्लज़ीनत्-त-बऊ-क फ़ौक़ल्लज़ी-न क-फरू इला यौमिल-कियामति सुम्-म इलय्-य मर्जिअकुम् फ़-अह्कुमु बैनकुम् फ़ीमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफून (55)
जब अल्लाह ने कहा, “ऐ ईसा! मैं तुझे अपने क़ब्ज़े में ले लूँगा और तुझे अपनी ओर उठा लूँगा और अविश्वासियों (की कुचेष्टाओं) से तुझे पाक कर दूँगा और तेरे अनुयायियों को क़ियामत के दिन तक उन लोगों के ऊपर रखूँगा, जिन्होंने इनकार किया। फिर मेरी ओर तुम्हें लौटना है। फिर मैं तुम्हारे बीच उन चीज़ों का फ़ैसला कर दूँगा, जिनके विषय में तुम विभेद करते रहे हो।”

फ़-अम्मल्लज़ी-न क-फरू फ़-उअज्जिबुहुम् अज़ाबन् शदीदन फ़िद्दुन्या वल्-आख़ि-रति व मा लहुम् मिन्-नासिरीन (56)
“तो जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, उन्हें दुनिया और आख़िरत में कड़ी यातना दूँगा। उनका कोई सहायक न होगा।”

व अम्मल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति फ़-युवफ्फीहिम् उजूरहुम् , वल्लाहु ला युहिब्बुज्जालिमीन (57)
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें वह उनका पूरा-पूरा बदला देगा। अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।

ज़ालि-क नत्लूहु अलै-क मिनल-आयाति वज्जिक्रिल हकीम (58)
ये आयतें है और हिकमत (तत्वज्ञान) से परिपूर्ण अनुस्मारक, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं।

इन्-न म-स-ल-अीसा अिन्दल्लाहि क-म-सलि आद-म ख़-ल-कहू मिन् तुराबिन् सुम्-म का-ल लहू कुन् फ़-यकून (59)
निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा, “हो जा”, तो वह हो जाता है।

अल-हक्कु मिर्रब्बि-क फला तकुम् मिनल-मुम्तरीन (60)
यह हक़ तुम्हारे रब की ओर से है, तो तुम संदेह में न पड़ना।

फ़-मन् हाज्ज-क फ़ीहि मिम्-बअ्दि मा जाअ-क मिनल् अिल्मि फकुल तआलौ नद्अु अब्ना-अना व अब्ना-अकुम् व निसा-अना व निसा-अकुम् व अन्फु-सना व अन्फु-सकुम् , सुम्-म नब्तहिल् फ़-नज्अल्-लअ्-नतल्लाहि अलल्काज़िबीन (61)
अब इसके पश्चात कि तुम्हारे पास ज्ञान आ चुका है, कोई तुमसे इस विषय में कुतर्क करे तो कह दो, “आओ, हम अपने बेटों को बुला लें और तुम भी अपने बेटों को बुला लो, और हम अपनी स्त्रियों को बुला लें और तुम भी अपनी स्त्रियों को बुला लो, और हम अपने को और तुम अपने को ले आओ, फिर मिलकर प्रार्थना करें और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजें।”

इन्-न हाज़ा लहुवल् क-ससुल-हक्कु व मा मिन् इलाहिन् इल्लल्लाहु , व इन्नल्ला-ह ल-हुवल-अज़ीजुल हकीम (62)
निस्संदेह यही सच्चा बयान है और अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। और अल्लाह ही प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।

फ-इन् तवल्लो फ़-इन्नल्ला-ह अलीमुम् बिल्मुफ्सिदीन (63)*
फिर यदि वे लोग मुँह मोड़ें तो अल्लाह फ़सादियों को भली-भाँति जानता है।

Surah Al Imran In Hindi रुकूअ- 7

कुल या अह़्लल्-किताबि तआलौ इला कलि-मतिन् सवा-इम् बैनना व बैनकुम् अल्ला नअ़बु-द इल्लल्ला-ह व ला नुश्रि-क बिही शैअंव-व ला यत्तखि-ज़ बअ्जुना बअ्जन अरबाबम् मिन् दूनिल्लाहि , फ़-इन् तवल्लौ फ-कूलुश्-हदू बिअन्ना मुस्लिमून (64)
कहो, “ऐ किताबवालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है; यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए।” फिर यदि वे मुँह मोड़ें तो कह दो, “गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।”

या अह़्लल्-किताबि लि-म तुहाज्जू-न फ़ी इब्राही-म व मा उन्ज़ि-लतित्तौरातु वल्-इन्जीलु इल्ला मिम्-बअ्दिही , अ-फला तअ्किलून (65)
“ऐ किताबवालो! तुम इबराहीम के विषय में हमसे क्यों झगड़ते हो? जबकि तौरात और इंजील तो उसके पश्चात उतारी गई हैं, तो क्या तुम समझ से काम नहीं लेते?

हा-अन्तुम् हा-उला-इ हाजन्तुम् फ़ीमा लकुम् बिही अिल्मुन् फ़लि-म तुहाज्जू-न फ़ी मा लै-स लकुम् बिही अिल्मुन् , वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून (66)
ये तुम लोग हो कि उसके विषय में तो वाद-विवाद कर चुके जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान था। अब उसके विषय में क्यों वाद-विवाद करते हो, जिसके विषय में तुम्हें कुछ भी ज्ञान नहीं? अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते।”(

मा-का-न इब्राहीम यहूदिय्यंव-वला नसरानिय्यंव्-व लाकिन् का-न हनीफ़म् मुस्लिमन् , वमा का-न मिनल मुश्रिकीन (67)
इबराहीम न यहूदी था और न ईसाई, बल्कि वह तो एक ओर का होकर रहनेवाला मुस्लिम (आज्ञाकारी) था। वह कदापि मुशरिकों में से न था।

इन्-न औलन्नासि बि-इब्राही-म लल्लज़ीनत्त-बअूहु व हाज़न्नबिय्यु वल्लज़ी-न आमनू , वल्लाहु वलिय्युल मुअ्मिनीन (68)
निस्संदेह इबराहीम से सबसे अधिक निकटता का सम्बन्ध रखनेवाले वे लोग हैं जिन्होंने उसका अनुसरण किया, और यह नबी और ईमानवाले लोग। और अल्लाह ईमानवालों को समर्थक एवं सहायक है।

वद्दत्ताइ-फ़तुम् मिन् अहिलल्-किताबि लौ युज़िल्लू-नकुम् , व मा युज़िल्लू-न इल्ला अन्फु-सहुम व मा यश्अुरून (69)
किताबवालों में से एक गरोह के लोगों की कामना है कि काश! वे तुम्हें पथभ्रष्ट कर सकें, जबकि वे केवल अपने-आपको पथभ्रष्ट कर रहे हैं।! किन्तु उन्हें इसका एहसास नहीं।

या अहलल्-किताब लि-म तक्फुरू-न बिआयातिल्लाहि व अन्तुम् तश्हदून (70)
ऐ किताबवालो! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि तुम स्वयं गवाह हो?

या अह़्लल् किताबि लि-म तल्बिसूनल् हक्-क़ बिल बातिलि व तक्तुमूनल हक्-क व अन्तुम् तअ्लमून (71)*
ऐ किताबवालो! सत्य को असत्य के साथ क्यों गड्ड-मड्ड करते और जानते-बूझते सत्य को छिपाते हो?

Surah Al Imran In Hindi रुकूअ- 8

व कालत्ताइ-फतुम् मिन् अहिलल्-किताबि आमिनू बिल्लज़ी उन्ज़ि-ल अलल्लज़ी-न आमनू वज्हन्नहारि वक्फुरू आख़ि-रहू लअल्लहुम् यरजिअून (72)
किताबवालों में से एक गरोह कहता है, “ईमानवालों पर जो कुछ उतरा है, उस पर प्रातःकाल ईमान लाओ और संध्या समय इनकार कर दो, ताकि वे फिर जाएँ।

व ला तुअ्मिनू इल्ला लिमन् तबि-अ दीनकुम , कुल् इन्नल्हुदा हुदल्लाहि अंय्युअ्ता अ-हदुम् मिस्-ल मा ऊतीतुम् औ युहाज्जूकुम् अिन्-द रब्बिकुम् , कुल् इन्नल् फ़ज्-ल बि-यदिल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा-उ , वल्लाहु वासिअन् अलीम (73 )
और तुम अपने धर्म के अनुयायियों के अतिरिक्त किसी पर विश्वास न करो। कह दो, ‘वास्तविक मार्गदर्शन तो अल्लाह का मार्गदर्शन है’ – कि कहीं जो चीज़ तुम्हें प्राप्त है उस जैसी चीज़ किसी और को प्राप्त हो जाए, या वे तुम्हारे रब की नज़र में तुम्हारे समान हो जाएँ।” कह दो, “बढ़-चढ़कर प्रदान करना तो अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सब कुछ जाननेवाला है।

यख़तस्सु बिरह्मतिही मंय्यशा-उ , वल्लाहु जुल्फ़गज्लिल अज़ीम (74)
वह जिसे चाहता है अपनी रहमत (दयालुता) के लिए ख़ास कर लेता है। और अल्लाह बड़ी उदारता दर्शानेवाला है।”

व मिन् अह़्लिल्-किताबि मन् इन् तअ्मन्हु बिकिन्-तारिंय्युअद्दिही इलै-क व मिन्हुम् मन् इन् तअ्मन्हु बिदीनारिल् ला युअद्दिही इलै-क इल्ला मा दुम्-त अलैहि का-इमन् , ज़ालि-क बि-अन्नहुम् कालू लै-स अलैना फ़िल्उम्मिय्यी-न सबीलुन् व यकूलू-न अलल्लाहिल-कज़ि-ब व हुम् यअ्लमून (75)
और किताबवालों में कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास धन-दौलत का एक ढेर भी अमानत रख दो तो वह उसे तुम्हें लौटा देगा। और उनमें कोई ऐसा है कि यदि तुम एक दीनार भी उसकी अमानत में रख दो, तो जब तक कि तुम उसके सिर पर सवार न हो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा। यह इसलिए कि वे कहते हैं, “उन लोगों के विषय में जो किताबवाले नहीं हैं हमारी कोई पकड़ नहीं।” और वे जानते-बूझते अल्लाह पर झूठ मढ़ते हैं।

बला मन् औफ़ा बि-अहिदही वत्तका फ-इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मुत्तकीन (76)
क्यों नहीं, जो कोई अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और डर रखेगा, तो अल्लाह भी डर रखनेवालों से प्रेम करता है।

इन्नल्लजी-न यश्तरू-न बि अहिदल्लाहि व ऐमानिहिम् स-मनन् क़लीलन् उलाइ-क ला ख़ला-क लहुम् फ़िल-आखि-रति वला युकल्लिमुहुमुल्लाहु वला यन्जुरू इलैहिम् यौमल-क़ियामति वला युज़क्कीहिम् व लहुम् अज़ाबुन् अलीम (77)
रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा और अपनी क़समों का थोड़े मूल्य पर सौदा करते हैं, उनका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न क़ियामत के दिन उनकी ओर देखेगा, और न ही उन्हें निखारेगा। उनके लिए तो दुखद यातना है।

व इन्-न मिन्हुम् ल-फ़रीक़ंय्यल्वू-न अल्सि-न-तहुम् बिल्किताबि लि-तहसबूहु मिनल-किताबि व मा हु-व मिनल-किताबि व यकूलू-न हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि व मा हु-व मिन् अिन्दिल्लाहि व यकूलू-न अलल्लाहिल-कज़ि-ब वहुम् यअ्लमून (78 )
उनमें कुछ लोग ऐसे हैं जो किताब पढ़ते हुए अपनी ज़बानों का इस प्रकार उलट-फेर करते हैं कि तुम समझो कि वह किताब ही में से है, जबकि वह किताब में से नहीं होता। और वे कहते हैं, “यह अल्लाह की ओर से है।” जबकि वह अल्लाह की ओर से नहीं होता। और वे जानते-बूझते झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपते हैं।

मा का-न लि-ब-शरिन् अंय्युअ्ति-यहुल्लाहुल किता-ब वल्हुक्म वन्नुबुव्व-त सुम्-म यकू-ल लिन्नासि कूनू अिबादल्ली मिन् दूनिल्लाहि व लाकिन् कूनू रब्बानिय्यी-न बिमा कुन्तुम् तुअल्लिमूनल-किता-ब व बिमा कुन्तुम् तद्रूसून (79)
किसी मनुष्य के लिए यह सम्भव न था कि अल्लाह उसे किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) और पैग़म्बरी प्रदान करे और वह लोगों से कहने लगे, “तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे उपासक बनो।” बल्कि वह तो यही कहेगा कि, “तुम ईश-भयवाले (रबवाले) बनो, इसलिए कि तुम किताब की शिक्षा देते हो और इसलिए कि तुम स्वयं भी पढ़ते हो।”

व ला यअ्मु-रकुम् अन् तत्तखिजुल-मलाइ-क-त वन्नबिय्यी-न अरबाबन् , अ-यअ्मुरूकुम् बिल्कुफ़िर बअ्-द इज् अन्तुम् मुस्लिमून (80)*
और न वह तुम्हें इस बात का हुक्म देगा कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना रब बना लो। क्या वह तुम्हें अधर्म का हुक्म देगा, जबकि तुम (उसके) आज्ञाकारी हो?

Surah Imran In Hindi रुकूअ- 9

व इज् अ-ख़ज़ल्लाहु मीसाकन् नबिय्यी-न लमा आतैतुकुम् मिन् किताबिंव-व हिक्मतिन् सुम्-म जाअकुम् रसूलुम् मुसद्दिकुल्लिमा म-अकुम् लतुअमिनुन्-न बिही व ल-तन्सुरून्नहू , का-ल अ-अक्ररतुम् व अ-ख़जतुम् अला ज़ालिकुम् इसरी , कालू अक़्ररना , का-ल फ़श्हदू व अ-न म-अकुम् मिनश्शाहिदीन (81)
और याद करो जब अल्लाह ने नबियों के सम्बन्ध में वचन लिया था, “मैंने तुम्हें जो कुछ किताब और हिकमत प्रदान की, इसके पश्चात तुम्हारे पास कोई रसूल उसकी पुष्टि करता हुआ आए जो तुम्हारे पास मौजूद है, तो तुम अवश्य उस पर ईमान लाओगे और निश्चय ही उसकी सहायता करोगे।” कहा, “क्या तुमने इक़रार किया? और इसपर मेरी ओर से डाली हुई ज़िम्मेदारी को बोझ उठाया?” उन्होंने कहा, “हमने इक़रार किया।” कहा, “अच्छा तो गवाह रहो और मैं भी तुम्हारे साथ गवाह हूँ।”

फ़-मन् तवल्ला बअ्-द ज़ालि-क फ़-उलाइ-क हुमुल फ़ासिकून (82)
फिर इसके बाद जो फिर गए, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी हैं।

अ-फ़गै-र दीनिल्लाहि यब्गू-न व लहू अस्ल-म मन् फिस्समावाति वल्अर्जि तौअंव-व करहंव-व इलैहि युरजअून (83)
अब क्या इन लोगों को अल्लाह के दीन (धर्म) के सिवा किसी और दीन की तलब है, हालाँकि आकाशों और धरती में जो कोई भी है, स्वेच्छापूर्वक या विवश होकर उसी के आगे झुका हुआ है। और उसी की ओर सबको लौटना है?

कुल् आमन्ना बिल्लाहि वमा उन्ज़ि-ल अलैना व मा उन्जि-ल अला इब्राही-म व इस्माली-ल व इस्हा-क व यअ्कू-ब वल्अस्बाति व मा ऊति-य मूसा व अीसा वन्नबिय्यू-न मिर्रब्बिहिम् ला नुफ़र्रिकु बै-न अ-हदिम् मिन्हुम् व नह्नु लहू मुस्लिमून (84)
कहो, “हम तो अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान लाए जो हम पर उतरी है, और जो इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याकूब़ और उनकी सन्तान पर उतरी उसपर भी, और जो मूसा और ईसा और दूसरे नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान हुई (उसपर भी हम ईमान रखते हैं) । हम उनमें से किसी को उस सम्बन्ध से अलग नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।”(

व मंय्यब्तगि गैरल्-इस्लामि दीनन् फ़-लंय्युकब-ल मिन्हु व हु-व फिल्-आखि-रति मिनल खासिरीन (85)
जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा।

कै-फ़ यहिदल्लाहु कौमन् क-फरू बअ्-द ईमानिहिम् व शहिदू अन्नरसू-ल हक्कुंव्-व जा-अहुमुल्बय्यिनातु , वल्लाहु ला यह्दिल कौमज्जालिमीन (86)
अल्लाह उन लोगों को कैसे मार्ग दिखाएगा, जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात अधर्म और इनकार की नीति अपनाई, जबकि वे स्वयं इस बात की गवाही दे चुके हैं कि यह रसूल सच्चा है और उनके पास स्पष्ट निशानियाँ भी आ चुकी हैं? अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाया करता।

उलाइ-क जज़ाउहुम् अन्-न अलैहिम लअ्-नतल्लाहि वल्मलाइ-कति वन्नासि अज्मअीन (87)
उन लोगों का बदला यही है कि उनपर अल्लाह और फ़रिश्तों और सारे मनुष्यों की लानत है।

खालिदी-न फ़ीहा ला युख़फ्फफु अन्हुमुल-अज़ाबु व ला हुम् युन्ज़रून (88)
इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की होगी और न उन्हें मुहलत ही दी जाएगी।

इल्लल्लज़ी-न ताबू मिम्-बअ़दि ज़ालि-क व अस्लहू फ़-इन्नल्ला-ह गफूर्रहीम (89)
हाँ, जिन लोगों ने इसके पश्चात तौबा कर ली और अपनी नीति को सुधार लिया तो निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।

इन्नल्लज़ी-न क-फरू बअ्-द ईमानिहिम् सुम्मज्दादू कुफ्रल्-लन् तुक्ब-ल तौबतुहुम् व उलाइ-क हुमुज्जाल्लून (90)
रहे वे लोग जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया और अपने इनकार में बढ़ते ही गए, उनकी तौबा कदापि स्वीकार न होगी। वास्तव में वही पथभ्रष्ट हैं।

इन्नल्लज़ी-न क-फरू व मातू व हुम् कुफ्फारून् फ़-लंय्युक्ब-ल मिन् अ-हदिहिम् मिल् उलू-अर्जि ज़-हबंव-व लविफ्तदा बिही , उलाइ-क लहुम् अज़ाबुन अलीमुंव-व मा लहुम् मिन्नासिरीन (91)*
निस्संदेह जिन लोगों ने इनकार किया और इनकार ही की दशा में मरे, तो उनमें किसी ने धरती के बराबर सोना भी यदि उसने प्राण-मुक्ति के लिए दिया हो तो कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है और उनका कोई सहायक न होगा।

Al Imran Surah रुकूअ- 10

लन् तनालुल्बिर्-र हत्ता तुन्फिकू मिम्मा तुहिब्बू-न , व मा तुन्फ़िकू मिन् शैइन् फ़-इन्नल्ला-ह बिही अलीम (92)
तुम नेकी और वफ़ादारी के दर्जे को नहीं पहुँच सकते, जब तक कि उन चीज़ों को (अल्लाह के मार्ग में) ख़र्च न करो, जो तुम्हें प्रिय हैं। और जो चीज़ भी तुम ख़र्च करोगे, निश्चय ही अल्लाह को उसका ज्ञान होगा।

कुल्लुत्तआमि का-न हिल्लल लि-बनी इस्राई-ल इल्ला मा हर्र-म इस्राईलु अला नफ्सिही मिन् कब्लि अन् तुनज्जलत्तौरातु , कुल फ़अ्तू बित्तौराति फ़त्लूहा इन् कुन्तुम् सादिक़ीन (93)
खाने की सारी चीज़ें इसराईल की संतान के लिए हलाल थीं, सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें तौरात के उतरने से पहले इसराईल ने स्वयं अपने लिए हराम कर लिया था। कहो, “यदि तुम सच्चे हो तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो।”

फ़-मनिफ्तरा अलल्लाहिल् कज़ि-ब मिम्-बअदि ज़ालि-क फ़-उलाइ-क हुमुज्ज़ालिमून (94)
अब इसके पश्चात भी जो व्यक्ति झूठी बातें अल्लाह से जोड़े, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी हैं।

कुल स-दकल्लाहु फत्तबिअू मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न् , वमा का-न मिनल मुश्किीन (95)
कहो, “अल्लाह ने सच कहा है; अतः इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करो, जो हर ओर से कटकर एक का हो गया था और मुशरिकों में से न था।

इन्-न अव्व-ल बैतिंव्वुज़ि-अ लिन्नासि लल्लज़ी बि-बक्क-त मुबा-रकव-व हुदल्-लिल्आलमीन (96)
निस्ंसदेह इबादत के लिए पहला घर जो ‘मानव के लिए’ बनाया गया वही है जो मक्का में है, बरकतवाला और सर्वथा मार्गदर्शन, संसारवालों के लिए।

फ़ीहि आयातुम् बय्यिनातुम् मक़ामु इब्राही-म , व मन् द-ख-लहू का-न आमिनन् , व लिल्लाहि अलन्नासि हिज्जुल्बैति मनिस्तता-अ इलैहि सबीलन् , व मन् क-फ्-र फ़-इन्नल्ला-ह ग़निय्युन् अनिल आलमीन (97)
उसमें स्पष्ट निशानियाँ हैं, वह इबराहीम का स्थल है। और जिसने उसमें प्रवेश किया, वह निश्चिन्त हो गया। लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।”

कुल् या अह़्लल्-किताबि लि-म तक्फुरू-न बिआयातिल्लाहि वल्लाहु शहीदुन् अला मा तअ्मलून (98)
कहो, “ऐ किताबवालो! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह की दृष्टि में है?”

कुल या अह़्लल्-किताबि लि-म तसुद्दू-न अन् सबीलिल्लाहि मन् आम-न तब्गूनहा अि-वजंव-व अन्तुम् शु-हदा-उ , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून (99)
कहो, “ऐ किताबवालो! तुम ईमान लानेवालों को अल्लाह के मार्ग से क्यों रोकते हो, तुम्हें उसमें किसी टेढ़ की तलाश रहती है, जबकि तुम भली-भाँति वास्तविकता से अवगत हो और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।”

या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन तुतीअू फ़रीकम् मिनल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब यरूद्दूकुम् बअ्-द ईमानिकुम् काफ़िरीन (100)
ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुमने उनके किसी गरोह की बात मान ली, जिन्हें किताब मिली थी, तो वे तुम्हारे ईमान लाने के पश्चात फिर तुम्हें अधर्मी बना देंगे।

व कै-फ़ तक्फुरू-न व अन्तुम् तुत्ला अलैकुम् आयातुल्लाहि व फ़ीकुम् रसूलुहू , व मंय्यअ्तसिम् बिल्लाहि फ़-क़द् हुदि-य इला सिरातिम् मुस्तकीम (101)*
अब तुम इनकार कैसे कर सकते हो, जबकि तुम्हें अल्लाह की आयतें पढ़कर सुनाई जा रही हैं और उसका रसूल तुम्हारे बीच मौजूद है? जो कोई अल्लाह को मज़बूती से पकड़ ले, वह सीधे मार्ग पर आ गया।

बाकी के रुकूअ यहाँ से पढ़ें…. Surah Ale Imran Ruku 11-20

Share This Article

Related Posts

सूरह अलम नसरह हिन्दी में | Surah Alam Nashrah In Hindi

hands praying with tasweeh logo and roza rakhne ki dua hindi red blue and green text

Roza Rakhne Ki Dua in Hindi | रोज़ा रखने की दुआ हिंदी में तर्जुमा के साथ

family doing ifter and roza kholne ki dua rd, blue and green text

Roza Kholne Ki Dua in Hindi | रोज़ा खोलने की दुआ हिंदी में और फ़ज़ीलत

Comments

Leave a Comment

About Us

Surahinhindi

हमारी Surah in Hindi वेबसाइट में कुरान की सभी सूरह को हिंदी में तर्जुमा और तफसीर के साथ मौजूद कराया गया है, साथ ही साथ आपको हमारी इस website से कुरान की सभी मसनून दुओं की जानकारी हिंदी में दी जाती है

Popular Posts

सूरह अलम नसरह हिन्दी में | Surah Alam Nashrah In Hindi

Roza Rakhne Ki Dua in Hindi | रोज़ा रखने की दुआ हिंदी में तर्जुमा के साथ

Roza Kholne Ki Dua in Hindi | रोज़ा खोलने की दुआ हिंदी में और फ़ज़ीलत

Surah Qadr in Hindi Pdf | इन्ना अनज़ल नाहु सूरह कद्र हिंदी तर्जुमा के साथ

Important Pages

About Us

Contact Us

Disclaimer

Privacy Policy

Guest Post

Phone: +917060605950
Email: Ayaaz19400@gmail.com