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Shab e Barat Ke Bare Me? | शब-ए-बारात क्यूँ और कब मनाते हैं?

Category: Ramzan Se Judi Batein | रमज़ान से जुड़ी बातें

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दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम शबे बारात (Shab E Barat) के बारे में अच्छे से जानेंगे कि शब-ए-बरात क्या है, इसका मतलब क्या है और ये क्यूँ मनाई जाती है?

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शब ए बारात कब मनाई जाती है?

इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक़, शब-ए-बरात हर साल एक बार शाबान महीने की 15 तारीख को मनाई जाती है।

इसका मतलब यह हुआ कि शाबान की 14 तारीख को सूरज गुरूब (सूर्यास्त) के बाद शब-ए-बारात शुरू होती है।

(क्यूंकि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक़ सूरज के डूबने के बाद से ही दूसरा नया दिन शुरू हो जाता है।)

15 शअबान को हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में कुछ मुसलमान बहुत धुम-धाम से बड़े ज़ोर-सोर से शबे-बारात मनाते हैं।

▶️ यह भी जरूर पढ़ें: – शब-ए-क़द्र की फ़ज़ीलत हिंदी में


शबे-बारात क्या है? | Shab E Barat Kya hai?

शबे-बारात से जुड़ी कुछ बातें लोगों को काफी सोंच में डालती हैं।

जैसे कि कुछ लोगों का मानना है कि शबे-बारात का मनाना बिदअत होता है तो कुछ लोग कहते हैं कि इसे खूब अच्छे तरीके और धूम धाम से मनाना चाहिए।

तो इन बातों को सुनते हुए जो आम मुसलमान हैं, वो क्या करें? शबे-बारात को मनाएं या ना मनाएं?

इसी बारे में हम आपको कुछ बातें बताएँगे, जो कि हमने क़ुरान और हदीस के हबाले से रिसर्च करके पायी हैं।

इन बातों को जानने के बाद आपको खुद फैसला करना होगा कि शबे-बारात मनाना चाहिए या नहीं।

तो चलिए सबसे पहले जानते हैं शबे-बारात का मतलब क्या होता है?


शबे बरात का क्या मतलब है?

शब-ए-बारात दो शब्दों से मिलकर बना है, शब और बारात।

जिसका लोग मतलब बताते हैं कि शब का मतलब रात और बारात का मतलब बरी होना होता है। यानी इस रात में अल्लाह अपने बन्दों को गुनाहों से बरी करता है।

जबकि 15 शअबान की रात का नाम ना क़ुरान में आया है और ना हदीस में आया है।

कुछ लोग इसे दूसरी रातों यानी शबे कद्र से जोड़ने की कोशिश करते हैं।

अगर इसका सही अरबी मायना जानें तो पता चलता है कि शबे बारात का मतलब निकलता है नफरत का इज़हार करना। क्यूंकि बारात का अरबी में मायने नफरत से है।

आप अगर सूरह तौबा पढेंगे तो पायेंगे कि अल्लाह ने फ़रमाया है कि बरातू मिनल्लाही व रसूलिही।

जिसका तर्जुमा होता है कि अल्लाह और उसके रसूल नफरत का इज़हार करते हैं मुशरिकीन से।

अब आप खुद समझदार हैं कि क्या इस रात को शबे बारात कहना सही है?

▶️ यह भी जरूर पढ़ें: – रमज़ान कैलेंडर 2023


Shab E Barat के दुसरे नाम

यह अरब में लैलतुल बराह या लैलतुन निसफे मतलब शाबान के नाम से जाना जाता है।

यह शब-ए-बारात के नाम से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल में जाना जाता है।

▶️ यह भी जरूर पढ़ें: – नमाज़ की 10 छोटी सूरह


शबे बारात क्यों मनाया जाता है?

जो लोग शबे-बारात खूब जोर-शोर से मानते हैं, उनका यह कहना कि इस रात में अल्लाह ताला हम मुसलमानों के गुनाहों को माफ करते हैं और इस रात में लोगों का पिछले सालभर का पूरा हिसाब-किताब होता है उसको लिखा जाता है।

इसलिए मुस्लमान लोग जागते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं।

कुछ लोग इस रात को एक वाकिये से जोड़ते हैं। आईये शबे-बारात के वाकिया के बारे में जान लेते हैं।

शबे-बारात का वाकिया

यह रिवायत सख्त ज़ईफ़ है लोग शबे-बारात के वाकिया के बारे में यह बोलते हैं कि एक बार नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, हजरत आयशा रदियल्लाहो तअला अन्हो के हुजरे से निकलकर बाहर गए,

हजरत आयशा रदियल्लाहो तअला अन्हो भी चुपके से उनके पीछे-पीछे गयीं।

उन्होंने देखा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जन्नतुल बकी (जो मदीना का कब्रिस्तान था) गए।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वहाँ पहुंचकर अहले कब्रिस्तान के लिए दुआ की।

फिर आप नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वापस आ गए। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत आयशा रदियल्लाहो तअला अन्हो को उनके पीछे आते देख लिया था।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने घर आकर पुछा: – आयशा क्या तुम्हें ऐसा अंदेशा था कि अल्लाह और उसके रसूल तुमपर जुल्म करेंगे?

तो हजरत आयशा रदियल्लाहो तअला अन्हो ने फ़रमाया: – मुझे ये शक हुआ कि शायद आप अपनी दूसरी बीबियों के पास गए हैं। लिहाजा मैं पीछे-पीछे आई।

तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे फ़रमाया: –

बेशक अल्लाह ताअला 15 शाअबान की रात को आसमाने दुनिया पर उतरता है और इतने लोगों की मगफिरत करता है जितनी बनू कल्ब की बकरियों के बाल हैं।

इसकी सही बात यह है कि अल्लाह तआला केवल पन्द्र्ह शअबान को ही नहीं बल्कि रोज़ाना दो तिहाई रात गुज़रने के बाद आसमाने दुनिया पर नुजूल फ़रमाता है,

और कहता है :- है कोई मुझसे दुआ करने वाला कि मैं उसकी दुआ कुबूल करुं,

है कोई मुझसे मांगने वाला है कि मैं उसे दूं,

है कोई मुझसे बख्शिश तलब करने वाला है कि मैं उसे बख्श दूं। (बुखारी पेज 153 जिल्द 1)


आखिरी शब्द

तो जैसा कि हमने जाना कि शब-ए-बरात की कोई पुख्ता दलील मौजूद नहीं है।

अल्लाह हमें दीं की सही समझ अत फरमाए।

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